उपन्यास >> लाल रेखा लाल रेखाकुशवाहा कान्त
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लाल रेखा हिन्दी के लोकप्रिय उपन्यासों में मील का पत्थर है जिसने बड़े पैमाने पर हिन्दी के पाठक बनाए। 1950 में लिखे इस उपन्यास में उस समय हिन्दी उपन्यास की जितनी धाराएँ थीं, सभी को एक साथ इसमें समाहित किया गया है। रोमांस, रहस्य, राष्ट्रवाद और सामाजिक मूल्यों से ओत-प्रोत कथानक एक मानक की तरह है। देश की आज़ादी के संग्राम की पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास में लाल और रेखा की प्रेम कहानी है लेकिन इसमें प्रेम से बढ़कर देश-प्रेम दिखाया गया है। देशहित व्यक्तिगत हितों से अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। जहाँ एक ओर निज और समाज के हितों की बात है वहीं दूसरी ओर स्त्री और पुरुष की समानता की बात भी है। लाल रेखा अपने विषय के लिए ही नहीं, काव्यात्मक भाषा के लिए भी आज तक जाना जाता है।
आज से करीब 75 साल पहले लिखा यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
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